शेर से सामना
संता (बंता से)- बंता भाई एक दिन अपना सामना जीते-जागते शेर से हो गया और मेरे पास कोई हथियार नहीं था।
बंता (संता से)- ओह! फिर क्या किया तुमने?
संता- मैं कर ही क्या सकता था? मैंने पहले तो उसकी आंख की पुतलियों को देखा, मगर वह मुझे देखकर गुर्राता रहा। फिर मुझे लगा कि अगर मैंने इसकी गरदन पकड़ ही ली तो मेरा खतरा टलेगा नहीं और बढ़ जाएगा, और वह घूरता रहा-घूरता रहा।
बंता- फिर तुमने उससे छुटकारा किस प्रकार पाया?
संता- बस मैंने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया और दूसरे पिंजरे की तरफ बढ़ गया।
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